समय

 

हूं घिरा मैं कांटों से हर ओर से

जैसे बुरा चलता मेरा समय है अभी

छुपता फिरता हूं ना जाने क्यों आज कल

किसका खाता मुझे ऐसा भय है अभी


ना सहारा कोई मेरा दिखता यहां

किनारा भी कश्ती को मिल न रहा

जब से खोया उन्हें है तो ऐसा लगे

कि खोने को अब मेरे  कुछ न रहा


विफलताओं से पस्त ये जीवन मेरा

ना कविता को मिलती ही लय है अभी

हूं घिरा मैं कांटों से हर ओर से

जैसे बुरा चलता मेरा समय है अभी

सारे सपने मेरे अब व्यर्थ हुए

पसरे चहुं ओर निराशा के अर्थ हुए

जतन खुद के लिए तो सारे किए

पर बेवश थे हम, असमर्थ हुए


कल से मैं तो अभी हूं परिचित कहां

हो रहा मेरा जीवन क्षय है अभी

हूं घिरा मैं कांटों से हर ओर से

जैसे बुरा चलता मेरा समय है अभी

अब तृष्णा कहूं या अपेक्षा मेरी

अधिकार कहूं या  कि इक्षा मेरी

प्राप्त वैसे तो सम्पूर्ण कुछ भी नही

ये जीवन भी जैसे कोई भिक्षा मिली


कष्ट सहना हैं और फिर चले जाना है

अंत मेरा लगे जैसे तय है अभी

हूं घिरा मैं कांटों से हर ओर से

जैसे बुरा चलता मेरा समय है अभी

छुपता फिरता हूं ना जाने क्यों आज कल

किसका खाता मुझे ऐसा भय है अभी

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