संदेश

लिख दूंगा

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  जहाँ तुम हो मेरी जाना मुझे भी तुम वहीं समझो। तुम्हें मैंने चुना मेरी पसंद को तुम सही समझो। फकत मुझमें तुम्हारी ही तुम्हारी थी कमी समझो। मेरी नजरों से तुम देखो तो खुद को महजबीं समझो। तुम्हारे नाम के नीचे मैं अपना नाम लिख दूंगा। तुम्हारे दिल को ही जन्नत औ चारों धाम लिख दूंगा। तुम्हीं रस्ता, तुम्हीं मंजिल, तुम्हें पैगाम लिख दूंगा। तुम्हीं आगाज, तुमको ही मेरा अंजाम लिख दूंगा। तेरे दिल के कहीं भीतर मेरा एक और भी घर है। जहाँ यादों का पहरा है औ यादों का ही मंजर है। मेरी दुनिया यकीं कर लो तुम्हारे दिल के अंदर है। मैं बहती नाव के जैसा तुम्हारा दिल समन्दर है। तुम्हारे सुर्ख होठों को छलकते जाम लिख दूंगा। तुम्हारे संग मिलता है मुझे आराम लिख दूंगा। मैं तुमको राधिका खुद को सलोना श्याम लिख दूंगा। ओ मेरी "अर्चना" खुद को तुम्हारा "राम" लिख दूंगा। मैं हर एक रात जगता हूँ, कभी खुद जगाओ तुम। मेरी गजलों को मेरे संग आकर गुनगुनाओ तुम। तुम्हे ज़िद आजमाने की तो बेशक आजमाओ तुम। तुम्हारा नाम इस दिल पर, है हिम्मत तो मिटाओ तुम। तुम्हीं दिन रात, तुमको ही मैं सुबह शाम लिख दूंगा। मेरा जो ...

एक प्याली चाय

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 एक प्याली चाय… (विश्व चाय दिवस पर) जिंदगी से बड़ा करीबी नाता है, मुझे बचपन से भाता है, ये एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो मजा आ जाय। सरहदों पे जवान तैनात। जाड़े की रात हो,और जागने की बात हो, एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो बात बन जाय। रेलगाड़ी का सफर, बहुत दूर है डगर,कैसे कटे ये सफर, एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो बात बन जाय। सर पे एग्जाम है। बस पढ़ना पढ़ना ही काम है, थोड़ा तो मन बहल जाय, एक प्याली चाय … मिल जाय, तो चैन मिल जाय। बहुत सारे मेहमान है, सब भूख से परेशान हैं, खाने में अभी देर है क्या? एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो बात बन जाय। सुबह जल्दी जाना है, कोई नींद से जगाय, कहीं गाड़ी ना छूट जाए,सुबह सुबह, एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो बात बन जाय। काम का बोझ बहुत है, खतम होने का नाम ही नही लेता, मन ऊब सा रहा है मैडम, एक प्याली चाय… मिल जाय, तो बात बन जाय। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

मैं अगर खुश हूं

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  **मैं अगर खुश हूं** मैं   अगर   खुश   हूं,  तो    खुश   हूं, ये बताने की  ………………..जरूरत क्या हैं। मेरी  खुशी  सबको पचती नहीं शायद, बेवजह उनको जलाने की ………..…. ….जरूरत  क्या  है। उनकी  वजह   से   मिली   हो  खुशी, तो     ये    अलग    बात     है  वरना,  खामखां ढोल बजाने की, ……..………..जरूरत  क्या है। खुश  होना न  होना मेरे  बस  में  कहां, खा रहा गोता भंवर में ये अलग बात है, अपनी तरह औरों को डुबाने की, ………………..जरूरत   क्या   है। कोई रूठे  तो   बेशक मना  लें  उनको, फिक्र करते हैं उनकी,ये जता दें उनको।  बे वजह रूठने  की हो आदत जिनकी, ऐसे रूठों को मनाने की… ……………………जरूरत क्या है। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

जल गई सोने की लंका

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           ।।जल गई सोने की लंका।। जल  गई  सोने  की  लंका, पूंछ  भी जल  पाई ना, दूत थे  हनुमान  उनके,अग्नि  जिसने  पैदा  किया। हनुमान  को  वानर जो  समझे,वो  बड़ा नादान  है, सूर्य  को  भी निगल जाता,बजरंगबली भगवान हैं। मिले न जब तक राम वे,खुद को भी ना जानते थे, भक्त बने  जब  राम के, तब  विश्व  ने जाना  उन्हें। राम  की  सेवा में तत्पर,दुष्टों के लिए  महाकाल हैं, पवन के  प्रिय पुत्र  हैं जो, मां अंजनी  के  लाल हैं। भक्त सब  कुछ त्याग जब,भगवान से जुड़ जाते हैं, भगवत कृपा होती है ऐसी,भगवान ही कहलाते हैं। स्वार्थ  अपना  त्याग जो,परमार्थ  में  लग जाते  है, भक्त शिरोमणि  हनुमान की, कृपा  दृष्टि वे पाते हैं। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

सूरज की तरह

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  . **सूरज की तरह** सूरज की तरह, चलना होगा, औरों के लिए, जलना होगा। सब अपने हैं, कोई गैर नहीं, यह भाव नित्य, भरना होगा। सुख दुख तो, आनी जानी है, जीवन की, अमिट कहानी है। आज को, जी लो जी भर के, कब मौत आ जाए,किसने जानी है। पर मत भूलो, अमिट हो तुम, ईश्वर की रचना, अमित हो तुम। जो किरदार मिला, करते जाओ, पर याद रखो, असीमित हो तुम। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

छाँह मिल जाएगी

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  दिनांक: 27/05/2025 विषय: छाँह मिल जाएगी जहाँ चाह वहाँ राह, ढूंढनी पड़ेगी छाँह, चाह दमदार हो तो, छाँह मिल जाएगी। है खुद पे विश्वास तो, हुनर तेरा खास तो, तेरे मन की संपत्ति, कहीं नहीं जाएगी। लगातार जो चलेगा, हाथ कभी ना मलेगा, मान तू मंजिल तेरी, तुझे मिल जाएगी। माना कि प्रतीक्षा हुई, ये भी एक शिक्षा हुई, जिंदगी से सीख लेगा, बात बन जाएगी। कर्म पे है अधिकार, फल छोड़ दे उधार, एक दिन मेहनत, तेरी रंग लाएगी। अच्छा व्यवहार तेरा, सब से ही प्यार तेरा, अच्छी आदतें ही तुझे, जग में जिताएगी। कितनी भी ऊंचाई हो, अन्दर में सच्चाई हो, परिस्थिति कोई भी हो, तुझे न गिराएगी। " राम " की तू बात मान, तू लगा दे पूरी जान, फिर कोई भी ना शक्ति, तुझे रोक पाएगी। स्वरचित मौलिक रचना रामचन्द्र श्रीवास्तव कवि, गीतकार एवं लेखक नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ 6263926054

हिन्दी

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25/05/2025 विषय: हिन्दी पहले सुनाई दिया, बाद में दिखाई दिया, जन्मते ही सुना जिसे, हिन्दी माँ समान है। छठी हुई मेरी जब, पंडित बुलाया तब, उन्होंने किया हिन्दी में, मंत्रों का बखान है। सुने गीत सुनी कथा, सुनी लोरी सुनी व्यथा, हिन्दी में ही सुने मैंने, पोथी व पुरान हैं। कोई भी खिलाए मुझे, गोद में झुलाए मुझे, मेरे कान कर रहे, हिन्दी का ही पान हैं। जब लगा बोलने मैं, मुंह लगा खोलने मैं, टूटी फूटी जो भी बोलूं, हिन्दी की ही तान है। गोदी में रहा मैं डोल, दादा बोल दादी बोल, हिन्दी भाषा ही तो, सुन रहे मेरे कान हैं। विद्यालय प्रवेश में, नवीन परिवेश में, गुरुजी ने दिया मुझे, हिन्दी का ही ज्ञान है। सूर या तुलसीदास, महाकवि कालिदास, हिन्दी के साहित्यकार, हिन्दी की सन्तान हैं। चंदबरदाई वीर, घनानंद या कबीर, कोई लिखे दोहे कहीं, नायिका सुजान है। भारतेंदु हरिश्चंद, मीराबाई प्रेमचंद, कोई भक्ति में तो कोई, लिखता गोदान है। यहाँ हरिऔध भी हैं, और नई पौध भी हैं, गद्य और पद्य का भी, एक जैसा ध्यान है। हरिवंश राय भी हैं, तो गुलाब राय भी हैं, नवरस मधुशाला, रस की ही खान है छंद अलंकार यहाँ, वीरता श्रृंगार यहाँ, जग में ...