लिख दूंगा

 


जहाँ तुम हो मेरी जाना मुझे भी तुम वहीं समझो।
तुम्हें मैंने चुना मेरी पसंद को तुम सही समझो।
फकत मुझमें तुम्हारी ही तुम्हारी थी कमी समझो।
मेरी नजरों से तुम देखो तो खुद को महजबीं समझो।

तुम्हारे नाम के नीचे मैं अपना नाम लिख दूंगा।
तुम्हारे दिल को ही जन्नत औ चारों धाम लिख दूंगा।
तुम्हीं रस्ता, तुम्हीं मंजिल, तुम्हें पैगाम लिख दूंगा।
तुम्हीं आगाज, तुमको ही मेरा अंजाम लिख दूंगा।

तेरे दिल के कहीं भीतर मेरा एक और भी घर है।
जहाँ यादों का पहरा है औ यादों का ही मंजर है।
मेरी दुनिया यकीं कर लो तुम्हारे दिल के अंदर है।
मैं बहती नाव के जैसा तुम्हारा दिल समन्दर है।

तुम्हारे सुर्ख होठों को छलकते जाम लिख दूंगा।
तुम्हारे संग मिलता है मुझे आराम लिख दूंगा।
मैं तुमको राधिका खुद को सलोना श्याम लिख दूंगा।
ओ मेरी "अर्चना" खुद को तुम्हारा "राम" लिख दूंगा।

मैं हर एक रात जगता हूँ, कभी खुद जगाओ तुम।
मेरी गजलों को मेरे संग आकर गुनगुनाओ तुम।
तुम्हे ज़िद आजमाने की तो बेशक आजमाओ तुम।
तुम्हारा नाम इस दिल पर, है हिम्मत तो मिटाओ तुम।

तुम्हीं दिन रात, तुमको ही मैं सुबह शाम लिख दूंगा।
मेरा जो कुछ है सब कुछ मैं तुम्हारे नाम लिख दूंगा।
तुम्हें पहली जरूरत और जरूरी काम लिख दूंगा।
ओ मेरी "अर्चना" तुमको गुल ए गुलफाम लिख दूंगा।

तुम्हारी जिन्दगी मुझको किताब ए पाक लगती है।
तुम्हारे बिन ये दुनिया भी मुझे तो खाक लगती है।
मेरे दिल की हो तुम मलिका, तुम्हारी धाक लगती है।
तुम्हारे हुस्न पर चलती जुबां बेबाक लगती है।

हो गर दीदार रोजाना मैं एक ईनाम लिख दूंगा।
तुम्हारे अक्स के आगे हुआ गुमनाम लिख दूंगा।
तुम्हारे इश्क में मै हो गया बदनाम लिख दूंगा।
तुम्हारा था तुम्हारा हूँ अशआर ए आम लिख दूंगा।

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