मैं अगर खुश हूं


 

**मैं अगर खुश हूं**


मैं   अगर   खुश   हूं,  तो    खुश   हूं,

ये बताने की 

………………..जरूरत क्या हैं।


मेरी  खुशी  सबको पचती नहीं शायद,

बेवजह उनको जलाने की

………..…. ….जरूरत  क्या  है।


उनकी  वजह   से   मिली   हो  खुशी,

तो     ये    अलग    बात     है  वरना, 

खामखां ढोल बजाने की,

……..………..जरूरत  क्या है।


खुश  होना न  होना मेरे  बस  में  कहां,

खा रहा गोता भंवर में ये अलग बात है,

अपनी तरह औरों को डुबाने की,

………………..जरूरत   क्या   है।


कोई रूठे  तो   बेशक मना  लें  उनको,

फिक्र करते हैं उनकी,ये जता दें उनको।

 बे वजह रूठने  की हो आदत जिनकी,

ऐसे रूठों को मनाने की…

……………………जरूरत क्या है।


✍️ विरेन्द्र शर्मा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

आज, अभी नशे का सामान छोड़ दीजिए

पत्रकारों के लिए विशेष रचना

सबके पास कुछ ना कुछ सुझाव होना चाहिए।