हिन्दी



25/05/2025
विषय: हिन्दी

पहले सुनाई दिया, बाद में दिखाई दिया,
जन्मते ही सुना जिसे, हिन्दी माँ समान है।

छठी हुई मेरी जब, पंडित बुलाया तब,
उन्होंने किया हिन्दी में, मंत्रों का बखान है।

सुने गीत सुनी कथा, सुनी लोरी सुनी व्यथा,
हिन्दी में ही सुने मैंने, पोथी व पुरान हैं।

कोई भी खिलाए मुझे, गोद में झुलाए मुझे,
मेरे कान कर रहे, हिन्दी का ही पान हैं।

जब लगा बोलने मैं, मुंह लगा खोलने मैं,
टूटी फूटी जो भी बोलूं, हिन्दी की ही तान है।

गोदी में रहा मैं डोल, दादा बोल दादी बोल,
हिन्दी भाषा ही तो, सुन रहे मेरे कान हैं।

विद्यालय प्रवेश में, नवीन परिवेश में,
गुरुजी ने दिया मुझे, हिन्दी का ही ज्ञान है।

सूर या तुलसीदास, महाकवि कालिदास,
हिन्दी के साहित्यकार, हिन्दी की सन्तान हैं।

चंदबरदाई वीर, घनानंद या कबीर,
कोई लिखे दोहे कहीं, नायिका सुजान है।

भारतेंदु हरिश्चंद, मीराबाई प्रेमचंद,
कोई भक्ति में तो कोई, लिखता गोदान है।

यहाँ हरिऔध भी हैं, और नई पौध भी हैं,
गद्य और पद्य का भी, एक जैसा ध्यान है।

हरिवंश राय भी हैं, तो गुलाब राय भी हैं,
नवरस मधुशाला, रस की ही खान है

छंद अलंकार यहाँ, वीरता श्रृंगार यहाँ,
जग में विशेषता से, ये गुंजायमान है।

गुरुजी ने ये सिखाया, हमको ये बतलाया,
हर भारतीय में ही, हिन्दी का सम्मान है।

भाषाएं अनेक यहाँ, बोली भी अनेक यहाँ,
राष्ट्रभाषा हिंदी सभी, भाषा में प्रधान है।

पढ़ना जो सीखा मैंने, अनुभव तीखा मैंने,
पाया कि समाज से ही, हिन्दी का कटान है।

विदेशी भाषा को चाहें, हिन्दी भाषी दूर जाएं,
आजकल जहाँ देखो, ऐसे ही विद्वान हैं।

हर भाषा पुष्प दल, सभी देव नहीं खल,
जग सारा सुगंधित, पुष्पों का उद्यान है।

कोई भी नीचे नहीं है, कोई भी पीछे नहीं है,
हिन्दी भाषा में सभी की, पूजा का विधान है।

गीत कविता लिखूं मैं, शब्द सरिता लिखूं मैं,
मेरी मातृभाषा है ये, हिन्दी माँ महान है।

स्वरचित
रामचन्द्र श्रीवास्तव
नवा रायपुर, छत्तीसगढ़
6263926054

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