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धुंआ धुंआ

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  धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ, धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ, धुंआ धुंआ है रे..... धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ, धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ, धुंआ धुंआ है रे..... मुश्किल धुंए में है जीना आसां नहीं साँस लेना कब तक धुएं में जिओगे एक दिन ये तुम भी कहोगे हो....., हो....., हो....., हो..... मुश्किल धुंए में है जीना आसां नहीं साँस लेना कब तक धुएं में जिओगे एक दिन ये तुम भी कहोगे हो....., हो..... छोड़ गांजा फूंकना, तू छोड़ हुक्का रे छोड़ दे कश खींचना, तू छोड़ सुट्टा रे हो हो छोड़ गांजा फूंकना, तू छोड़ हुक्का रे छोड़ दे कश खींचना, तू छोड़ सुट्टा रे धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ, धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ, धुंआ धुंआ है रे..... धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ, धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ धुंआ धुंआ है धुंआ धुंआ, धुंआ धुंआ है रे..... आदत जो तुमको लगी है यारी नहीं दुश्मनी है सबने कहा अब तो छोड़ो जीवन से नाता तो जोड़ो हो....., हो....., हो....., हो..... आदत जो तुमको लगी है यारी नहीं दुश्मनी है सबने कहा अब तो छोड़ो जीवन से नाता तो जोड़ो हो....., हो..... छोड़ गांजा फूंकना, तू ...

आज, अभी नशे का सामान छोड़ दीजिए

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दिल होकर बीमार, जिसकी हालत तार तार कहता है कि आप धूम्रपान छोड़ दीजिए। लीवर है खराब, डॉक्टर देते हैं जवाब आप जाना दारू की दुकान छोड़ दीजिए। काले लाल दांत, नहीं होते है बर्दाश्त आप गुटखा, खैनी और पान छोड़ दीजिए। लग गई है लत, कैसे छूटेगी कमबख्त आप देना फालतू का ज्ञान छोड़ दीजिए। छोड़ो ये नशा और अपने मन को मना मजबूती से अपने दिल में ठान छोड़ दीजिए। नशे से बर्बाद, लोग करते हैं फरियाद आज, अभी नशे का सामान छोड़ दीजिए।

बस एक गुलाब चाहता हूं

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अब मैं आंखों में ऐसा एक ख़्वाब चाहता हूं दहलीज ए कब्र पर मेरी बस एक गुलाब चाहता हूं मेरे सवालों की फेहरिस्त में जो एक सवाल है मेरे क़ातिल से मैं उसका जवाब चाहता हूं हमदोश तो खुशी में शामिल कई हैं लेकिन इज़हार ए ग़म को भी एक अहबाब चाहता हूं देखा है इंसां की शक्ल में भेड़ियों को सो आज ही की शब में वो अज़ाब चाहता हूं आज के मुबैयना शायर जो कहकर दाद पाते हैं  इल्म अपनी भी शायरी में इतना खराब चाहता हूं वो मज़हब के लोग तो मियां क़ाफ़िर हैं ऐसे हर्फ  जिसमें लिखे हों वो मुकम्मल किताब चाहता हूं जदीद रोज़ ए हिसाब के पहले तो मुमकिन ही नहीं है ये क्या की आज आफताब तो कल मेहताब चाहता हूं Insta ID - @jadeed_nazmkaar Link - https://www.instagram.com/jadeed_nazmkaar?utm_source=qr&igsh=NzBud2hxNzhkOHo5

सबके पास कुछ ना कुछ सुझाव होना चाहिए।

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कुछ हो कारोबार, जाती, धर्म, परिवार पहले मातृभूमि से लगाव होना चाहिए। जिंदगी की कीमत, समझें इसकी जरूरत इसके लिए थोड़ा तो अभाव होना चाहिए। हो गए हो बोर, सुन के एक जैसा शोर जिंदगी में कुछ तो बदलाव होना चाहिए। सुन्दर ऊपर से ही, मायने कोई नहीं भीतर से श्रृंगार और बनाव होना चाहिए। खाली है जेहन, कुविचारों का मनन सुन्दर ख्यालातों का भराव होना चाहिए। जो भी तुझको देखे, तुझसे कुछ ना कुछ तो सीखे तुझसे प्रेरणा का ऐसा स्राव होना चाहिए। छोड़ लालच, लोभ, हो, बिना किसी क्षोभ दुनिया में कहीं भी गर चुनाव होना चाहिए। यही सबका मंत्र, जिएं सारे ही स्वतंत्र किसी का न किसी पे दबाव होना चाहिए। रुकना नहीं तू, प्यारे, थकना नहीं तू जिंदगी में नदी सा बहाव होना चाहिए। हो जाए आसान, झोंक, दे तू यदि जान लक्ष्य के प्रति ही तेरा चाव होना चाहिए। जो भी लगे सच्चा, व्यवहार तुझे अच्छा औरों के प्रति तेरा वो भाव होना चाहिए। जो ना दे सम्मान, करे तेरा अपमान तुरत ही उससे अलगाव होना चाहिए। राजनीति साथ, या फिर कुश्ती की हो बात उल्टा ना पड़ जाए ऐसा दांव होना चाहिए। मेहनतकश किसान, दे, जुझारू जवान ऐसा देश का हर एक गांव होना चाहिए। राज ...

जैसे कोई कर्ज हो उमर भर ठहरा

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एक गुनाह कुछ यूं हमारे सर पर ठहरा  जैसे कोई कर्ज हो उमर भर ठहरा चला था ख़ाबों में देखे हर रास्ते पर मैं   जनम का अंधा मैं हर रास्ते पे जा कर ठहरा गया है जब से वो शक़्स जिसको हम वालिद कहते थे  हमारी आँखों में तब से है कोई समुंदर ठहरा उदासी का मौसम जिस बस्ती में छाया हो  समझो वही एक कोने में मेरा घर ठहरा लेकर आए कभी लिफ़ाफ़े में बंद एक खुश खबरी  कहां मुकद्दर में मेरे ऐसा कोई नामाबर ठहरा इश्क में होते हुए भी साथ था मैं दूसरी के भी  कैसे कह दूं की किसी का भी मैं उम्र भर ठहरा ये शगुफ़ नहीं है कहानी है ज़ीश्त की मेरी  फकत एक यही मुझमें अब तलक हुनर ठहरा "जदीद" ऐसी ग़ज़ल कहते हो कि मालूम होता है  अगले जमाने का तुमको कोई हो डर ठहरा Insta ID - @jadeed_nazmkaar Link - https://www.instagram.com/jadeed_nazmkaar?utm_source=qr&igsh=NzBud2hxNzhkOHo5

शून्य

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मैं शून्य क्यों मानती हूँ अपने आप को। आओ बताऊं कविता में अपने इतिहास को।। मेरी आन, बान, शान भारत मेरा देश है। जन्म स्थान बिहार जो मेरे लिए विशेष है।। 94,163 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाले बिहार में मैं अनीता शून्य हूँ। भारत के 2.86 प्रतिशत मानवों में मैं शून्य हूँ।। राज्यों के क्षेत्रफल में 12 वाँ इसका स्थान है। उत्तरी दिशा नेपाल से सटे मधुबनी के गांव अरेर में मेरा जहान है।। 173 फिट 53 मीटर समुद्र से बिहार की ऊंचाई है। लम्बाई 345 किमी और 483 किमी. चौड़ाई है।। शून्य से कम कुछ नहीं इसलिए खुद को मैं जीरो मानती हूँ। जीरो से हीरो का सफर तय निश्चित होगा ऐसा मैं मानती हूँ।।

चुभे क्यूं तीर सबको मेरी आवाज के

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चुभे क्यूं तीर सबको मेरी आवाज के  नाखून हैं क्या ये किसी चील बाज के गर हम में शोखी है नहीं तो हम चाहते भी ये है कि हमसे आके मिले लोग हों जो हममिज़ाज के मेरे मकां में कोई भी इंसान नहीं है पर  दो चार बोरे पड़े हुए है यूं ही अनाज के नगदी नहीं है जेब में मगर फोन पे में है  यूं ही कुछ ढाई सौ रुपए वो भी ब्याज के इतनी नादारी है की अब कैसे जुगाड़े हम  बिस्तर पर पड़ी मां के लिए पैसे इलाज के होते थे पहले लाखों में दो चार ही शायर  दो लाइन लिख के बच्चे बने हैं शायर आज के आखिर वो भी लटक गया एक पंखे से "जदीद"  सह नहीं पाया वो भी ताने समाज के Insta ID - @jadeed_nazmkaar Link - https://www.instagram.com/jadeed_nazmkaar?utm_source=qr&igsh=NzBud2hxNzhkOHo5

अभिभावक

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  प्रिय अभिभावक, आप वो सड़क हैं जो खुद एक जगह रहकर, सबको मंजिल तक पहुंचाते हैं। मेरे जीवन में, वो मिठास है आप, जो दिखते नहीं पर मंजिल की और प्रेम से ले पाते हैं। आपका संयम और संघर्ष, हम जैसों को, वृक्ष में लिपटे, बेल की तरह उठाते हैं। आप एक जगह रहकर, हमें मंजिल तक पहुंचाते हैं।। आप हमारे बीच में रहकर, हमें उठना, बढ़ना, संघर्ष व मर्यादा के साथ मेहनत की सीढ़ी पर चढ़ाते हैं। सड़क की तरह एक जगह रहकर, हमें मंजिल तक पहुंचाते हैं।। मैं अनीता झा अपने अभिभावक की आभारी हूँ। आपकी कृपा से शिक्षित हूँ, मैं बारम्बार आभारी हूँ।

मेला

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अपनो की भीड़ में, तेरा मन अकेला है। कैसे तुझे बताऊं जीवन में, सुख कम दुख का मेला है।। कुछ क्षण आए होगें तेरे जीवन में, जिसे तेरे मन ने रो रो के झेला है। तेरी आँखें नम होकर कह रही थी, तू अपनों की भीड़ में अकेला है।। तेरे पास भी मेरे जैसे, नाम के रिश्ते होगें। बस मन को इतना समझा, इनमें कुछ फरिश्ते होंगे।। तुझे प्यार मिला तो, तेरे भाव जाग गये। नम आँखें बता रही थी, दिल के घाव भाग गये।।

देखा नहीं गया

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खुद के अंदर खुद का मरना देखा नहीं गया ख्वाबों का यूं मातम करना देखा नहीं गया हम आए थे शहर तुम्हारे कल तुमसे मिलने मिले बगैर ही हिजरत करना देखा नहीं गया कैसी कैसी चाहत मेरी तुमसे हैं इश्क में हर चाहत का रोज बिखरना देखा नहीं गया कोई न कोई नया घाव जिस्म को हर एक दिन है रोजाना एक ज़ख्म निखरना देखा नहीं गया कभी कभी तो कुछ थोड़ी खुशियां घर आती हैं अब इस तरीके घर संवरना देखा नहीं गया धीरे धीरे एक एक सांसें रोज घट रही बूंद बूंद का दरिया भरना देखा नहीं गया चाट गई है सुकून नींद मेरी वो एक सूरत इन हालों दिन रात गुजरना देखा नहीं गया भीड़ में मेरा चर्चा "जदीद" अब तो रहने दो मुझसे यूं अजमत का उतरना देखा नहीं गया Insta ID - @jadeed_nazmkaar Link - https://www.instagram.com/jadeed_nazmkaar?utm_source=qr&igsh=NzBud2hxNzhkOHo5

समय

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  हूं घिरा मैं कांटों से हर ओर से जैसे बुरा चलता मेरा समय है अभी छुपता फिरता हूं ना जाने क्यों आज कल किसका खाता मुझे ऐसा भय है अभी ना सहारा कोई मेरा दिखता यहां किनारा भी कश्ती को मिल न रहा जब से खोया उन्हें है तो ऐसा लगे कि खोने को अब मेरे  कुछ न रहा विफलताओं से पस्त ये जीवन मेरा ना कविता को मिलती ही लय है अभी हूं घिरा मैं कांटों से हर ओर से जैसे बुरा चलता मेरा समय है अभी सारे सपने मेरे अब व्यर्थ हुए पसरे चहुं ओर निराशा के अर्थ हुए जतन खुद के लिए तो सारे किए पर बेवश थे हम, असमर्थ हुए कल से मैं तो अभी हूं परिचित कहां हो रहा मेरा जीवन क्षय है अभी हूं घिरा मैं कांटों से हर ओर से जैसे बुरा चलता मेरा समय है अभी अब तृष्णा कहूं या अपेक्षा मेरी अधिकार कहूं या  कि इक्षा मेरी प्राप्त वैसे तो सम्पूर्ण कुछ भी नही ये जीवन भी जैसे कोई भिक्षा मिली कष्ट सहना हैं और फिर चले जाना है अंत मेरा लगे जैसे तय है अभी हूं घिरा मैं कांटों से हर ओर से जैसे बुरा चलता मेरा समय है अभी छुपता फिरता हूं ना जाने क्यों आज कल किसका खाता मुझे ऐसा भय है अभी

बनारसी प्रेम

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  एक कलम , पत्र और श्याही लूं अब एक दूजे का सार लिखें गहन चिंतन पूरे मन से कर आ दोनो को विस्तार लिखूं तुम शहर बनारस की ऋतु वसंत मैं धूल का एक बवंडर हूं तुम संगेमरमर की चमक धमक मैं काला सा एक खंडहर हूं तुम घाट घाट बहती गंगा मैं घाट का अंतिम पत्थर हूं  तुम सरल, शांत, सुंदर स्वरुप मैं व्यवहारों से फक्कड़ हूं तुम अस्सी घाट की शाष्त्रवादी मैं परिभाषित आवारा हूं तुम जैसे शाम दिसंबर की में अंतिम जीवन यात्रा हूं तुम काशी की सी आदि अंत मैं बीच लहर में फसा हुआ मणिकर्णिका जैसी रौशन तुम मैं मृत्यु सैया में धसा हुआ तुम प्रेम पूर्ण और पाक साफ मैं मटमैली सी सीढ़ी हूं तुम गंगाजल की ठंडक हो में दरस तरसती ये पीढ़ी हूं तुम वो बनारस हो प्रिए जो तंग गली में बसता है जो खिलखिला कर हंसता है जो गंगा को जाने का रस्ता है मैं वो बनारस हूं प्रिए  जो ट्रैफिक जाम में ठहरा सा  जो शंख ध्वनि से बेहरा सा जो गहन रहस्य से गहरा सा एक बात बताओ मुझको प्रिए क्या आसान है तुम सा होना कि, मोह, मर्म से तुम अछूत  जन्म , मरण, भविष्य, भूत सब काल चक्र गए पीछे छूट तुम गौरी शंकर की सी मूर्त शक्ति, तेज, की तुम स्...

कारोबार

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  प्रस्तुत कविता जिसका शीर्षक "कारोबार" है, यह "श्री बृजपाल मलिक उर्फ मलिक मदहोशी जी" की नशा उन्मूलन पर आधारित सुप्रसिद्ध "काव्य संग्रह पुस्तक नशा कैंसर" से ली गई है, जो कि समाज को नशे से दूर रहने और उसे समूल उखाड़ फेंकने के लिए प्रेरित करती है। इतनी सुंदर, प्रेरक और अर्थपूर्ण कविता को इस मंच तक पहुँचाने के लिए मैं श्री बृजपाल मलिक उर्फ मलिक मदहोशी जी का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। क्यों फैला कारोबार, नशा क्यों बिकता है। मत खाओ मेरे यार, जमाना पिसता है।। क्यों फैला..... धीमा जहर है पहचानों, मत खाओ प्यारे इंसानों। जो तुम्हें खिलाना चाहता है, उसकी साजिश को पहचानों।। परिवार में हो तकरार, प्यार कहाँ टिकता है। क्यों फैला..... जहर जो खाना शुरू किया, घर में झगड़े ने जन्म लिया। परिवार रोकता रहा तुझे पर , तूने अपना काम किया।। ना काबू रख पाया खुद पर, ना कभी रोकने से रूकता है। क्यों फैला..... आत्महत्या ही करनी है, जाकर कट जा तू रेल से। नशे के चक्कर में तुझको, कई बार छुड़ाया जेल से।। तिल-तिलकर खुद मरता है, फिर क्यों मरने से डरता है। क्यों फैला..... खुद तो मर जाएगा ज...

संतोष

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  मिट्टी के बरतन से खेलकर, मैं बड़ा खिलखिलाती थी। अपने प्यारे बचपन में, मैं बड़ा चहचहाती थी।। ना जाने मुझको क्या हो गया, मेरे पास अपने बहुत सारे, आकर्षित व ठोस बर्तन है, तब भी मन उदास व दिल में है संकोच। बहुत कुछ अपना है और चाहिए, ये सोचकर उदास मन और खत्म हुआ संतोष।। सहनशक्ति, मौन और भविष्य की चिंता ने, मेरे मन में बढ़ाया संकोच। इन बातो के बीच में मरता रह गया, मेरे मन का संतोष।। खेलना, खिलखिलाकर जोर से हँसना और अपनों के संग खुश रहना, अदांज बन जाए। आ जाओ सब मिलकर, एक दूसरे का, बचपन लौटाएं।।

उम्मीद की चिंगारी

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  स्त्री के चेहरे को मुरझा देती है, अपने पति की दी हुई, उम्मीद की चिंगारी। ऐसा मन बन जाता है, जैसे दीया की चिंगारी। कितनी बार क्रोध करे और रोए स्त्री यही तो होता है हर बारी।। स्त्री के चेहरे को मुरझा देती है, उम्मीद की चिंगारी। स्त्री बार बार बार संभलती और मुस्कुराते हुए सोचती है, कभी ना कभी आयेगी हमारी बारी। स्त्री के चेहरे को मुरझा देती है, उम्मीद की चिंगारी।। स्त्री शांत हो जाती है, फिर अपने आत्मसम्मान को, वापिस पाने की, करती है तैयारी। तब पुरुष, उपहास करते हुए कहते है, शायद अब तुम्हे, जरूरत नहीं है हमारी।। ऐसा पुरुष को, इसलिये लगता है, क्योंकि अब स्त्री के चेहरे को, नहीं मुरझा पाती, उम्मीद की चिंगारी। कलम की लिखावट, तकदीर की बनावट, चेहरे की घबराहट को समेटती स्त्री, करती है अपने निर्माण की तैयारी। अब कहाँ मुरझा पाती है, "मुस्कान" को, उम्मीद की चिंगारी।।

फीका सिंदूर

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  तन मिलता पर मन मिलता नहीं, हँस कर निभाती है स्त्री दुनिया का दस्तूर। कुछ स्त्रियों के भाग्य में होता है फीका सिंदूर।। माँग सजाने के कुछ पल बाद से ही, उड़ जाता है स्त्री के चेहरे का नूर। कुछ स्त्रियों के भाग्य में होता है फीका सिंदूर।। स्त्री जीवन बिताती है परिवार में कुछ, सामाजिक व पारिवारिक कारणों से होकर मजबूर। कुछ स्त्रियों के भाग्य में होता है फीका सिंदूर।। संस्कार, मर्यादा, परिवार की भावनाओं के कारण, स्त्री होकर भी बेकसूर, चुपचाप हँस कर लगाती है अपने माँग में फीका सिंदूर। कुछ स्त्रियों के भाग्य में होता है फीका सिंदूर।।

चमचा

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ख्वाहिशों के ये बाजार में बस बेचते रहते झूठी उम्मीदें नाम इनका है मशहूर "चमचा" शान में पढ़ते रहते कसीदे काम से इनको मतलब नहीं है सब किया मैंने, कहना यही है फिक्र इनको नही रहती कोई होठों पर फिक्र का जिक्र ही है करना हो उनको साबित जो खुद को फाड़ दें कितनी झूठी रसीदें नाम इनका है मशहूर "चमचा" शान में पढ़ते रहते कसीदे राजनीति यही खेलते हैं साथ वाले इन्हें झेलते हैं इनको इज्जत की परवाह न कोई सीनियर डांटते, पेलते हैं इनको भर-भर के मिलती है गाली रोज होते हैं उनके फजीते नाम इनका है मशहूर "चमचा" शान में पढ़ते रहते कसीदे ख्वाहिशों के ये बाजार में बस बेचते रहते झूठी उम्मीदें नाम इनका है मशहूर "चमचा" शान में पढ़ते रहते कसीदे

नेताजी सुभाष चंद्र बोस: भारत के अद्वितीय स्वतंत्रता सेनानी (पुण्य तिथि पर विशेष)

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सुभाष चंद्र बोस, जिन्हें हम नेताजी के नाम से जानते हैं, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। उनका नाम लेते ही भारतीय जनमानस में देशभक्ति, साहस और बलिदान की भावना जागृत हो जाती है। उन्होंने अपने अद्वितीय नेतृत्व और अटूट संकल्प से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। सुभाष चंद्र बोस का जीवन और उनकी सोच हमें आज भी प्रेरित करती है कि हम अपने देश के लिए निस्वार्थ भाव से कार्य करें। वे एक ऐसे नेता थे जो स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटे। उनकी जयंती और पुण्यतिथि दोनों ही हमें उनके अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प और मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम का स्मरण कराती है।    प्रारंभिक जीवन और शिक्षा सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ था। उनके पिता, जानकीनाथ बोस, एक प्रसिद्ध वकील थे और उनकी माता, प्रभावती, एक धार्मिक और शिक्षित महिला थीं। सुभाष चंद्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवेंशॉ कॉलेजिएट स्कूल में हुई, जहाँ उन्होंने अपनी मेधावी बुद्धि का प्रदर्शन किया। आगे की शिक्षा के लिए वे कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज गए और फिर बाद में कैंब्...

मदन लाल ढींगरा: एक अद्वितीय क्रांतिकारी (पुण्य तिथि पर विशेष)

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मदन लाल ढींगरा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान नायकों में से एक हैं, जिनके बलिदान ने देशवासियों के दिलों में आजादी की आग को प्रज्वलित किया। उनका जीवन संघर्ष, साहस और देशभक्ति की अद्वितीय मिसाल है। 17 अगस्त 1909 को उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर यह साबित कर दिया कि स्वतंत्रता के लिए उनका समर्पण अडिग और अटल था। प्रारंभिक जीवन मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब के अमृतसर में एक संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनका परिवार अंग्रेजी शासन का समर्थन करता था, लेकिन मदन लाल का झुकाव बचपन से ही स्वतंत्रता की ओर था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में प्राप्त की, लेकिन अंग्रेजों के प्रति परिवार के झुकाव के कारण उन्हें उनके विचारों के लिए विरोध का सामना करना पड़ा। बाद में उच्च शिक्षा के लिए उन्हें इंग्लैंड भेजा गया, जहां उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में अध्ययन किया। क्रांतिकारी बनने का सफर लंदन में रहने के दौरान मदन लाल ढींगरा का संपर्क भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं से हुआ। विशेष रूप से, वीर सावरकर से मिलने के बाद उनके भीतर...

अटल बिहारी वाजपेयी: अद्वितीय नेता और प्रेरणास्रोत (पुण्य तिथि पर विशेष)

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अटल बिहारी वाजपेयी जी भारतीय राजनीति के एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनकी सरलता, सादगी और गहन देशभक्ति ने उन्हें पूरे देश का प्रिय नेता बना दिया। वे केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक विचारक, कवि, और दूरदर्शी व्यक्ति भी थे। उनके नेतृत्व में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक नया स्थान प्राप्त किया और देशवासियों को गर्व से सिर ऊंचा रखने की प्रेरणा दी। प्रारंभिक जीवन और शिक्षा अटल जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। उनके पिता, कृष्ण बिहारी वाजपेयी, एक स्कूल शिक्षक और कवि थे, जिनसे अटल जी ने संस्कार और साहित्य प्रेम सीखा। उन्होंने राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कानपुर के डीएवी कॉलेज से की। पढ़ाई के साथ ही अटल जी आरएसएस से जुड़े और यहीं से उनकी राजनीति की यात्रा प्रारंभ हुई। राजनीतिक यात्रा अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में भाग लिया और जेल भी गए। उनकी राजनीतिक यात्रा 1951 में भारतीय जनसंघ के गठन के साथ शुरू हुई। अटल जी की वक्तृत्व कला और विचारशीलता ने उन्हें जल्द ही एक प्रमुख नेता बना दिया। 1977 में जनता प...

वतन प्रेमियों में मेरा नाम आए

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*मुखड़ा* ये जोशो जवानी किसी काम आए वतन प्रेमियों में मेरा नाम आए हे मां भारती मैं, तेरा लाड़ला हूं मेरा जर्रा जर्रा तेरे काम आए *अंतरा 1* वो झांसी की रानी, वो बूढ़े कुंवर सिंह वो तात्या व अनगिन वो योद्धा हमारे करो याद उनको हो तुम जिनसे जिंदा जिन्हे तुम हो भूले जेहन से तुम्हारे कि जिनके करम से हम आजादी पाए  वतन प्रेमियों में मेरा नाम आए ये जोशो जवानी किसी काम आए वतन प्रेमियों में मेरा नाम आए *अंतरा 2* खुदीराम ने तो वतन को चुना था था अठरह बरस सूली पर चढ़ गया था भगत सिंह, सुखदेव तो जंगजू थे कहां उनसे पीछे कहीं राजगुरु थे वो हमको शहादत का जज्बा सिखाए  वतन प्रेमियों में मेरा नाम आए ये जोशो जवानी किसी काम आए वतन प्रेमियों में मेरा नाम आए *अंतरा 3* हुआ बदला पूरा तभी जलियांवाला कि जब उधम सिंह ने डायर को मारा थे आजाद और बोस, विनायक सावरकर हिला जिनसे अंग्रेजी साम्राज्य सारा न क्षण भर भी विश्राम, आराम पाए  वतन प्रेमियों में मेरा नाम आए ये जोशो जवानी किसी काम आए वतन प्रेमियों में मेरा नाम आए *अंतरा 4* शहादत से हमको मिली हैं ...

सशक्त स्त्री

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  स्वयं रो कर स्वयं चुप हो जाना, सशक्त व मजबूत स्त्री की पहचान है। ये तो ज्यादातर स्त्री की कहानी है, वो कहाँ पुरुषों की तरह महान है। अपने सुख स्वाभिमान को त्याग कर परिवार को अहम मानना स्त्री की पहचान है। उसके भी कुछ सपने है, परिवार से कुछ उम्मीदें है, परिवार को कहाँ पता है कि स्त्री में भी जान है। स्त्री को अपना महत्त्व बताना पड़े और कहने पर परिवार को प्यार जताना पड़े, वो रिश्ता कहाँ, प्रेम व अभिमान हैं। स्त्री जब जहाँ रहना चाहती है तो सब त्याग कर रहती है, ये जानते हुए भी की उसका हर रिश्ता बेजान है। इसलिए कहा जाता है कि स्त्री महान है।

गुरु पूर्णिमा: श्रद्धा और सम्मान का पर्व

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गुरु पूर्णिमा: श्रद्धा और सम्मान का पर्व परिचय गुरु पूर्णिमा एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है जो गुरु और शिष्य के बीच के पवित्र संबंध का प्रतीक है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में ज्ञान, शिक्षा और गुरु के महत्व को रेखांकित करता है। गुरु पूर्णिमा हिंदू, जैन और बौद्ध धर्मों में मनाई जाती है। यह आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन पड़ती है, जो आमतौर पर जून या जुलाई में आती है। गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु पूर्णिमा का मुख्य उद्देश्य गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करना है। "गुरु" का अर्थ है अज्ञानता के अंधकार को दूर करने वाला और "पूर्णिमा" का अर्थ है पूर्ण चंद्रमा की रात। इस दिन, शिष्य अपने गुरु को उनके मार्गदर्शन और शिक्षा के लिए धन्यवाद देते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पर्व भारतीय शिक्षा प्रणाली में गुरु के सर्वोच्च स्थान को दर्शाता है। ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व गुरु पूर्णिमा का इतिहास और धार्मिक महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन को विभिन्न धर्मों में अलग-अलग कारणों से मनाया जाता है: 1. हिंदू धर्म: गुरु पूर्णिमा महर्षि...