भक्ति में लीन मन

 

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विषय: "भक्ति में लीन मन"

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ईश के छुएं चरण, ईश के भजें भजन,

ईश की कृपा से हो, भक्ति में लीन मन।


ईश ही प्रकाश पुंज, नभ गिरी धरा कुंज,

भक्ति मार्ग से हो शुद्ध, पापी मलीन मन।


ब्रह्मदेव ढालते हैं, विष्णुदेव पालते हैं,

शिव संहार कर्ता हैं, चंचल मीन मन।


जाने महिमा नाम की, कहता बातें काम की,

ईश को भजे सदैव, उच्च कुलीन मन।


ईश की कृति पवित्र, उच्च है तेरा चरित्र,

ईश से जुड़ा हुआ तू, ना कर हीन मन।


ईश से न फेर आंख, अंतर्मन में तू झांक,

ईश से विमुख हो तो, धर्म विहीन मन।


लोभ मोह क्रोध छोड़, पाप से तू नाता तोड़,

स्मरण में ईश के हो, सदा तल्लीन मन।


ईश में ही हो प्रयास, रोम रोम श्वास श्वास,

ईश में रहे सदा ही, तेरा विलीन मन।


सुन तेरी ही तू सदा, ईश के भजन तू गा,

ईश को ही सौंप दे तू, स्व के अधीन मन।


कर्म सौंप ईश को तू, पूज जगदीश को तू,

ईश का ही ध्यान कर, होगा नवीन मन।


मन भरा विकार हो, संदुषित विचार हो,

ईश को न मानता हो, वो भाग्यहीन मन।


बाद काम दूजा कर, आगे ईश पूजा कर,

रात्रिकाल सायंकाल, प्रातःकालीन मन।


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स्वरचित मौलिक रचना

रामचन्द्र श्रीवास्तव

कवि, गीतकार एवं लेखक

नवा रायपुर, छत्तीसगढ़

संपर्क सूत्र: 6263926054

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