कल्पना के पंख
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कल्पना के पंख
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तुमसे मिलकर, दिल मेरा, जाने कहाँ गुम हो गया,
मानो कोई कल्पना के पंख लेकर उड़ चला।
ज़िन्दगी बेरंग थी, तुम आ गए रंग आ गया,
मानो अंधियारे को कोई चीरता रौशन दिया।
चेहरे की मासूमियत, नटखट ये अंदाज ए बयां,
मानो जैसे कि कन्हैया कर रहा अठखेलियां।
ज़िन्दगी कागज़ है जिसपर तुमने दी निशानियां,
मानो चित्रकार कोई करता चित्रकारियां।
गौरवर्णी गाल पर एक श्यामवर्णी तिल धरा,
मानो बर्फीली सतह पर अकड़ कर कोई खड़ा।
गेसुओं के कोर पर पानी की बूंदों का धड़ा,
मानो मंगलसूत्र कोई खास हीरों से जड़ा।
देखते ही देखता मैं एकटक तुमको रहा,
मानो एकदम से खज़ाना देख कोई हिल गया।
नख हैं लंबे धारती हैं लंबी, कानी उंगलियां,
मानो तीक्ष्ण हथियारों का ही ज़ख़ीरा मिल गया।
हंसना, रोना, रूठना, और फिर झगड़ना, मानना,
मानो कला का एक धनी किरदारों में डूबा पड़ा।
तिरछी आंखों से कभी वो देखना मुझको तेरा,
मानो तीरंदाज़ कोई हो निशाना ले रहा।
जागती आंखों में भी केवल तुम्हारा अक्स सा,
मानो कोई ख्वाब में ही हो हक़ीक़त जी रहा।
प्रणय निवेदन मेरी जिद और दिल तुम्हारा पिघल रहा,
मानो जैसे बालहठ से ये ज़माना झुक रहा।
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स्वरचित मौलिक रचना
रामचन्द्र श्रीवास्तव
कवि, गीतकार एवं लेखक
नवा रायपुर, छत्तीसगढ़
संपर्क सूत्र: 6263926054
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