मैं क्यों आया हूँ?

मैं क्यों आया हूँ? जाति धरम और पैसों की दीवार गिराने आया हूँ मैं आशिक सच्चाई का मैं इश्क लुटाने आया हूँ ग़ुलाब की कलम से कलम कर कलम से लिखी आयते मोहब्बत इस दुनिया को पढ़ाने आया हूँ मज़बूत दिल, मज़बूत कंधे, मज़बूत इरादे भी हैं कुदरती कानून की चादर सर पे सजाने आया हूंँ बाज़ुओं में मेरी ताक़त भरी इस ऊपर वाले की बाज़ू वाले के साथ सुनहरी फसल उगाने आया हूँ दिल में अक़ीदा और आँखो में मंज़िले इंसानी है मैं ज़मीं पे सदाकत के फूल खिलाने आया हूँ 'इंसान' हूँ मैं औक़ात मेरी हर शय से ऊंची है दोज़ख भी फूंकी है अब जन्नत बनाने आया हूँ