दबा सा प्रेम

 

घर को महल बनाने में,
पति पत्नी का,
दबा सा प्रेम भी,
हाथों से निकल जाता है।

पता ही नहीं चलता,
कि ये जिम्मेदारीयाँ,
कब घर की खुशियों को,
निगल जाता है।

जरा सा वक्त देकर देखो,
अपने साथी को,
दबा सा प्रेम,
फिर से पिघल जाता है।

ये जीवन है,
परिस्थिति वही रहेगी,
बस चेहरे बदल जाएंगे।

खुल के जीयो,
अपने हिस्से की जिन्दगी,
जीवन कहाँ वापिस आएंगे।

शामिल करो अपनी जिम्मेदारियों में,
अपना ख्याल रखना,
खिलखिलाना, गुनगुनाना,
पता नहीं वक्त,
कब बदल जाता है।

घर को महल बनाने में,
पति पत्नी का,
दबा सा प्रेम भी,
हाथों से निकल जाता है।

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