मेरी छोटी सी दुनिया


 "मेरी छोटी सी दुनिया"


छोटी ही सही

पर मेरी दुनिया

मेरे रुकने से रूकती है

मेरे चलने से चलती है।

मेरी दुनिया में

उंगली की गिनती के

कुछ लोग हैं

जो इस दुनिया में

मेरे अपने हैं

जिनके लिए

मैं जीता हूं 

और शायद मर भी सकता हूं


इन्हें फर्क पड़ता है

मेरी खुशी और मेरे गम से

इन्हें फर्क पड़ता है

मेरे बीमार पड़ने से

यहां तक कि मेरी वजन से

इन्हें फर्क पड़ता है

जब मैं खाना नहीं खाता हूं

जब मैं नज़रे चुराता हूं

जब मैं गुस्सा हो जाता हूं

या जब मैं मुस्कुराता हूं

हां इन्हें फर्क पड़ता है


मेरी इस दुनिया की

सास-बहू में,

दादा-पोते में,

मां-बेटे में,

भाई-बहनों में,

देवरानी-जेठानी में,

ननंद- भाभी में,

और सभी रिश्ते में

मेरे होने ना होने से

फर्क पड़ता है


बस यही सोच सोच कर

मैं जिंदा हूं,

कई खुदखुशी के 

ख्याल के बाद भी

मैं जिंदा हूं.


पर सच कहूं

कड़वा है पर सच है

कि मैं सिर्फ जिंदा हूं

कि मुझे उतारा गया था

जमीन पर

एक बड़े मकसद के लिए

ना वो मकसद मिला

ना उसकी कोई मंजिल 

ना कोई रास्ता

इसलिए सांस दर सांस

मैं मर रहा हूं।

मैं जिंदा तो हूं

पर सिर्फ मौत का

इंतजार कर रहा हूं।

ऑफिस में भी मैनेजर था

और घर में भी

मैंनेजरी कर रहा हूं।


ठीक ऐसे ही जैसे

कोई ए.के.47 से

गुब्बारे फोड़ रहा हो।

रख के फेरारी गैरेज में

कहीं न पहुंचने के लिए

तेज दौड़ रहा हो।


कोई मिले मुझे 

कि जिसके दम पे

मेरी छोटी सी दुनिया

की चार दीवारी गिरा दूं

पकड़ के उसकी उंगली

मेरे अपनों को

अपने-पराए की सरहदों के पार 

उनके असल मकसद तक पहुंचा दूं


-अनीस खान 'इंसान'

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