माँ का प्यार



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माँ का प्यार

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अपने बच्चों पर माँ अपनी

ममता यूं बरसाती है।

मानो यह आकाश धरा पर,

वर्षा की बूंदें बरसाता।


अपना आंचल फैला कर के,

ऐसे प्यार लुटाती है।

मानो नदियों में पवित्र जल,

बिना रुके ही बहता जाता।


माँ छुटपन में ही बच्चों में,

संस्कार भर देती है।

मानो खाद जरूरी लेकर,

बीज एक पौधा बन जाता।


हर एक अवस्था पर ही माँ की,

छाया सिर पर रहती है।

मानो धरती का संबल ले,

पौधा एक पेड़ बन जाता।


लाड़ लड़ाती, डांट पिलाती,

कभी प्यार से समझाती।

मानो कि पूरी दुनिया की,

पूरी दुनिया ही है माता।


बच्चे का भी जहां वहीं तक,

जहाँ जहाँ दिखती है माता।

मानो माँ के आकर्षण से,

बच्चा खुद ही खींचता आता।


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स्वरचित मौलिक रचना

अर्चना श्रीवास्तव

कवयित्री

नवा रायपुर, छत्तीसगढ़

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