कल को किसने देखा है
**कल को किसने देखा है**
आज को जी लो, जी भर के,
कल को, किसने देखा है।
मुमुक्षु हैं हम, सभी यहां,
मंडराती काल की, रेखा है।
भिन्न भिन्न हैं, देश यहां,
भिन्न भिन्न, हैं नर नारी।
भिन्न भिन्न हैं, झरने नाले,
भिन्न भिन्न, हैं फुलवारी।
तरह तरह के, जीव जंतु,
तरह तरह की,आकृतियां हैं।
तरह तरह के, रूप रंग,
तरह तरह की, छवियां हैं।
जीवन प्रवाह, बह रहे सभी,
गंतव्य सभी का, एक ही है।
राह अलग है, चाह अलग है,
पर अंत सभी का, एक ही है।
सुंदर उपवन, खिला खिला मन,
जीवन तो, बाग बगीचा है।
आज को जी लो, जी भर के,
कल को किसने, देखा है।
✍️ विरेन्द्र शर्मा
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