नक्शे से ही मिट जाओगे तुम

 


।। नक्शे से ही मिट जाओगे तुम।।


बात आगे, बढ़ चुकी बहुत,

पीछे मुड़कर, अब देखना क्या।

क्यों हुआ, कैसे हुआ सब,

इनमे पड़कर, होना है क्या।


अब तो लगाना, है ठिकाने,  

दुश्मन के हर, नक्शे नाज को।

नेश्तो नाबूत, हम करके रहेंगे,

दुश्मन के, पंख और परवाज़ को।


पड़ोसी है हमारे, यह समझ,

गुस्ताखियां, नजरअंदाज करते रहे।

पछतावा होता है, ये सोचकर,

अब तक माफ, क्यों करते रहे।


फसादों में उलझे हो, खुद के,

तो अपना मसला, सुलझाओ तुम।

यूं बार बार हमारी,अमन ओ चैन,

न छेड़ो मैं कहता, बाज आओ तुम।


वैसे तो पहले, भी कह चुके पर,

सुन लो आखिरी, दफा और तुम।

अब के जो ना,बाज आए समझ लो,

नक्शे से ही, मिट जाओगे तुम।


✍️ विरेन्द्र शर्मा

व्ही आई पी सिटी, रायपुर

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