मैं कौन हूं

 


.          **मैं कौन हूं **


जब  से  होश, सम्हाला  मेरा  मन,

एक    ही     प्रश्न,    दुहराता   है।

कौन   हूं    मैं,   कहां   से   आया,

बार    बार     याद,   दिलाता   है।


कोई   कहे   मैं,  शून्य  से   आया,

तो     बोले   कोई,  आत्मा  हूं  मैं।

कोई      कहे,     ब्रह्मांश   हूं   मैं,

पर   भेद  समझ, ना  पाता हूं  मैं।


कहता      कोई,    मैं    शरीर   हूं,

अस्तित्व    मेरा,  शरीर   तक    है।

उसके    आगे,  कुछ   भी     नहीं,

खिलौने    सी,   मेरी     गति    है।


पढ़ा   बहुत,    सिद्धों   से    जाना,

गीता   पढ़,  खुद    को   पहचाना।

मैं  तो  मानूं,  मैं   भिन्न   शरीर   से,

शरीर   मेरा   है,   वस्त्र   मैं   जानूं।


जो  भी   हूं  पर, अदृश्य  शक्ति  से,

मेरा     है,     सदियों    से    नाता।

मृत्यु    न   मेरा,  हुआ   कभी  भी,

मैं  स्वयं   काल, ना  आता   जाता।


प्रकृति की दुस्तर, माया अच्छादित,

जो   मृत्यु   से   मैं,   घबराता   हूं।

जानूं   भय  का, नहीं कारण  कोई,

खुद  को   बार बार,  समझाता  हूं।


अब   तो   इतनी,  चाहत   है  बस,

उस अक्षय  आनंद,  को  पाऊं  मैं।

तेरे  चरणों   का ,आश्रय  मैं  पाऊं,

तुझ   में    ही,   घुल    जाऊं   मैं।


✍️ विरेन्द्र शर्मा

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