मैं लेखनी हूँ, क्या लिखूँ

मैं लेखनी हूँ, क्या लिखूँ, विषय वस्तु का भंडार है,
किस पर लिखूँ, क्या छोड़ दूं, यह प्रश्न बारम्बार है |
मैं प्रेरणा के, चेतना के शब्द ही दो बोल दूं,
या भ्रष्ट नेताओं की मैं करतूत सारी खोल दूं |
सौन्दर्य रस का काव्य लिख, मन में भरूँ उमंग ही,
या हास्य से मैं स्याही ले, लिख डालूँ कोई व्यंग ही |
मैं करुण रस ऐसा लिखूँ कि नीर आँखों से बहे,
या “राम” कुछ ऐसा लिखूँ, श्रोता लगाएं कहकहे |
सामाजिक कुरीतियों की मैं, लिख कर करूँ आलोचना,
या कुछ नया लिखने की मैं फिर से बनाऊँ योजना |
कष्ट निर्धन का लिखूँ या विलासिता धनवान की,
या मैं लिखूँ एक आरती, भक्ति भरी भगवान की |
या फिर, लिखूँ सौहार्द से परिपूर्ण एक कविता नई,
जिससे बहे जनचेतना, सद्कर्म की सरिता नई |
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