अंधतमस से ग्रस्त जीव का तम अरि दीप्त उजाला तुम।

अंधतमस से ग्रस्त जीव का
तम अरि दीप्त उजाला तुम।
वैष्णवजन के तुम बैकुंठ हो
शिव भक्तों का शिवाला तुम।
तुम हो ब्रम्हा का ब्रम्हलोक
गौमाता का गौशाला तुम।
रचना, पालन, संहार तुम्ही
गऊ, गंगा और हिमाला तुम।
भक्ति सुधा की क्षुधा पिपासा
प्रत्युत्तर में निवाला तुम।
जो है विलीन तुममें केवल
उस मस्त भक्त का हाला तुम।
तुम गीता का उपदेश सुगम
कुरुक्षेत्र खड़े विकराला तुम।
सागर जिससे भयभीत हुआ
वह शर से प्रकटी ज्वाला तुम।
हो तिलक तुम्ही, तुम ही त्रिशूल
चित्ताकर्षक मृगछाला तुम।
मैं क्या दूं चारों ओर तुम्ही
थाली, प्रसाद और माला तुम।
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