अधिकार

कहता है दो अधिकार मुझे।
आधार मुझे, आहार मुझे,
दो रहने को घर-बार मुझे।
कर्तव्य भाव पर कोई नही,
कहता है सीना ठोक ठोक।
कर्तव्य निभा ना पाऊँ तो,
दो घृणा और धिक्कार मुझे।
माँ-बाप अनाथालय में हैं,
वो स्वयं वाचनालय में है।
कहता वाचन में चीख चीख,
दो सेवा का अधिकार मुझे।
वह पाठ अमन का करता है,
और घर में हिंसा करता है।
फिर आज स्वयं से कहता है,
क्यों मिला नही है प्यार मुझे।
बाबाओं को, नेताओं को,
और बुद्धीजीवियों को देखो।
करते है बात अमन की और
कहते हैं दो हथियार मुझे।
मैं "राम" लिखूँ ऐसी कविता,
जिसको पढ़ पढ़ कर पाठकगण।
दें मुझको स्नेह, प्रशंसा ही,
है इतना तो अधिकार मुझे।
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