जनहित में जारी


आइए आज चलते हैं हंसी ठिठोली से भरे इस सफर में जो हमें हास परिहास की ट्रेन पर बैठ कर पूरा करना है। इस सफर में हास्य, मजाक, ठठ्ठा, उपहास, प्रसन्नता, खुशी, अट्टहास, ठहाका और खिल्ली जैसे स्टेशन होने के बावजूद यह ट्रेन हमें एक गंभीर विषय के चिंतन और मनन पर ले जाकर छोड़ेगी, तो आइए चलते है आनंद भरे इस मजेदार हंसाते, गुदगुदाते सफर में। आज मेरी हास्य कविता का शीर्षक है "जनहित में जारी" जो कि एक सामाजिक बुराई पर भी आपका ध्यान आकर्षित करेगी।



करता हूं जनहित में जारी समाचार यह आज।
इस घटना से शिक्षा ले कर रोको गलत रिवाज।।

शर्मा जी की हेकड़ी धरी रह गई सारी।
घटना का वर्णन करूं कर जनहित में जारी।।

शर्मा जी अब ले रहे जैसे तैसे सांस।
जब से लिया दहेज है गले पड़ी है फांस।।

सोने का बेलन मिला चांदी का चकला।
शर्मा जी के सर पे बाजे ता धिन धिन तबला।।

ता धिन धिन तबला तिनक धिन नाच नचाए।
नहीं किसी की हिम्मत आकर उन्हें बचाए।।

शर्मा जी की बीवी बोली खाना नहीं पकाऊंगी।
दस लाख का नगद दिया है होटल में ही खाऊंगी।।

पोछा तुम्ही लगाना तुम ही कपड़े धोना।
मेरे पास न आकर कोई दुखड़ा रोना।।

शर्मा जी से जब पूछा कैसे हैं बाल बच्चे।
बोले सर पर बाल नहीं हैं बच्चे हैं अच्छे।।

मैने शर्मा जी से पूछा कैसे हैं हालात।
रो कर बोले बेलन से टूट गए कुछ दांत।।

टूट गए कुछ दांत आंख कुछ धंसी हुई है।
बोले मेरी जीवन रेखा फंसी हुई है।।

बागडोर है अब मेरी देवी जी के हाथ।
मत पूछो क्यों आंख धंसी और क्यों टूटे ये दांत।।

काम मैं सारा करता वो बैठी रहती है।
तुम हो मेरे नौकर वो कहती रहती है।।

मैं हूं तेरी स्वामिनी तुम हो मेरे दास।
मैने दिया दहेज में टीवी, फ्रिज, गिलास।।

पांच लाख का चैक लिया दस लाख का कैश।
जिसका दूध तू पी रहा वो मेरी ही भैंस।।

बिन दहेज जो लाते तो करती सारा काम।
जो दहेजलोभी रहे, हो उसका ये अंजाम।।

जनहित में जारी करूं जनहित का संदेश।
है अपील इस मंच से छोड़ो दान दहेज।।

जन से जन की जनमुद्दों पर हो जनभागीदारी
तभी सफल होगी मुहिम जो है जनहित में जारी

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