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परिवार

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ परिवार ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ खुली आंखों से दिखता है उसे संसार कहते हैं। बिना शर्तों के मिलता है उसी को प्यार कहते हैं। गिले शिकवे भुला कर भी खड़े जो साथ रहते हैं । सम्हाले और न गिरने दे उसे परिवार कहते हैं। कि पहला प्यार माता है जगत जिसने दिखाया है। किसी माँ ने न बच्चों को कभी भूखा सुलाया है। पड़ी जब धूप की बदली तो आंचल में छिपाया है। ज़रूरत में खड़ा आगे तो माता को ही पाया है। पिता का प्यार दुनिया में हमें चलना सिखाता है। अगर थोड़ा भटक जाएं सही रस्ता दिखाता है। पिता निष्ठुर है इस खातिर वो माँ से कम ही भाता है। अगर माँ जन्म देती है पिता जीवन चलाता है। बहन भाई किसी को भी तो अच्छे से समझते हैं। वो जितना प्यार करते हैं वो उतना ही झगड़ते हैं। वो पहले दोस्त जो अपने हमें जीवन में मिलते हैं। वो जितना हो सके हमको दुखों से दूर रखते हैं। कि पत्नी आती है परिवार की खुशियां बढ़ाती है। वो एक घर बार को तज कर हमें अपना बनाती है। सभी को खुश करे ऐसे जतन हर आजमाती है। वो घर की लक्ष्मी घर को करीने से सजाती है। कि छोटे बच्चों से घर अंगना गूंजे है किलकारी। बने हैं बाप हम पत्नी बनी बैठी है महतारी। लि...

पत्रकारों के लिए विशेष रचना

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ पत्रकारों के लिए विशेष रचना 06/06/2025 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ वो खतरों से हैं खेलते। न जाने क्या क्या झेलते। चतुर्थ खम्भ देश को, विकास पर धकेलते। न झूठ सच को बोलते। दबी वो बात खोलते। कि खास आम सबकी ही, वो नब्ज़ को टटोलते। समाज की बुराई पर वो कर रहे प्रहार हैं। वो मीडिया के योद्धा वीर धीर पत्रकार हैं। हुआ है क्या इधर उधर। वो ले के आते हैं खबर। वो दृश्य शांति का ही हो, या हो कोई प्रखर समर। लगाते बाज़ी जान की। है चाह सिर्फ मान की। बहस करें वो देशहित, जो बात आए शान की। समाज के हितों के कार्य करते बार बार हैं। वो मीडिया के योद्धा वीर धीर पत्रकार हैं। लगे कलम को थामने। वो सच को लाते सामने। वो उनको भी हैं जांचते, जिन्हें चुना अवाम ने। हैं धमकियों के शोर से। घिरे वो चारों ओर से। वो ना रुकें वो ना थकें, लगे हैं पूरे ज़ोर से। मरे तो यह शरीर है न मर सके विचार हैं। वो मीडिया के योद्धा वीर धीर पत्रकार हैं। कभी भी वो नहीं बिके। वो सच पे ही सदा टिके। वो अपनी कामयाबियों, को अपने हाथों से लिखे। वो नींद चैन त्याग कर। कुवृत्तियों से भागकर। वो सत्य का अलख जला, जगाता सबको जागकर। कि कोशिशों से उनकी...

तुम्हें बारिश में जब देखूं

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 ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हें बारिश में जब देखूं ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तुम्हें बारिश में जब देखूं तो दिल मेरा बहकता है। बहुत कुछ चाहता कहना मगर थोड़ा ठिठकता है। तेरा वो खेलना बारिश में और रह रह के मुस्काना। मेरा दिल देख के तुझको महकता और चहकता है। तुम्हें बारिश में जब देखूं नज़र जाती है मेरी थम। मेरी धड़कन है बढ़ जाती नहीं होती ज़रा भी कम। तुम्हारे बाल गीले हैं तुम इनको जब झटकती हो। लगे मुझको तो कुछ ऐसा मेरा निकलेगा दम हमदम। तुम्हें बारिश में जब देखूं तो खुद से दूर होता हूँ। तुम इतनी खूबसूरत हो कि मैं मग़रूर होता हूँ। मैं टिक सकता नहीं जाना न सूरत में न सीरत में। मगर तेरा है शुकराना तुझे मंज़ूर होता हूँ। तुम्हें बारिश में जब देखूं मैं काबू में नहीं रहता। मैं खुद को रोक लेता हूँ मगर तुमसे नहीं कहता। ये जैसे बूंद बारिश की बदन से बह के गिरती है। यूं ही चाहूं कि मैं पागल रहूँ तेरे संग ही बहता। तुम्हें बारिश में जब देखूं ये दिल मदहोश हो जाए। तेरी साड़ी के आंचल को ये दिल छूना ज़रा चाहे। तेरा दीदार करती है नज़र नजरें छुपा कर के। कहीं ऐसा न हो सारा मेरा गुम जोश हो जाए। तुम्हें बारिश में जब देखूं मेरे अरमां ...

तेरे ही साथ अब जाना

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  ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तेरे ही साथ अब जाना ┈┉┅━❀꧁꧂❀━┅┉┈ तेरे ही साथ अब जाना मुझे हर शाम रहना है। तेरी हर बात को तुझसे ओ मेरे यार कहना है। तेरी सांसों में धड़कन में मेरे दिलदार बहना है। नहीं जीना जुदा होकर जुदाई अब न सहना है। तेरे ही साथ अब जाना मेरी ये जिंदगानी है। मुझे हर शाम बस तेरी ही बाहों में बितानी है। अमर जो इश्क करना है जरूरी आग पानी है। मुहब्बत के परिंदे हम ये रब की मेहरबानी है। तेरे ही साथ अब जाना मुझे तो चलते जाना है। मेरा हर शाम तेरा दिल तेरा दिल ही ठिकाना है। ज़माने ने मुहब्बत को कहाँ कब ठीक माना है। तेरी दुनिया है मुझमें और मेरा तुझमें ज़माना है। तेरे ही साथ अब जाना तू मुझको बात करने दे। मुझे पहचानना है ग़र तो आंखों में उतरने दे। तू मुझको थाम के दिल में ज़रा मुझको ठहरने दे। मैं एक तस्वीर टूटी सी उठा मुझको संवरने दे। तेरे ही साथ अब जाना उमर सारी बिता लूंगा। मैं हर एक शाम यादों की किताबों में छिपा लूंगा। तेरे नखरे उठाऊंगा मैं आखिर तक निभा लूंगा। तू मेरा साथ दे देना मैं हर हिम्मत जुटा लूंगा। तेरे ही साथ हर शामें टहलना चाहता है दिल। न हो गर साथ तेरा तो मेरा जीना भी है मुश्किल...

लिख दूंगा

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  जहाँ तुम हो मेरी जाना मुझे भी तुम वहीं समझो। तुम्हें मैंने चुना मेरी पसंद को तुम सही समझो। फकत मुझमें तुम्हारी ही तुम्हारी थी कमी समझो। मेरी नजरों से तुम देखो तो खुद को महजबीं समझो। तुम्हारे नाम के नीचे मैं अपना नाम लिख दूंगा। तुम्हारे दिल को ही जन्नत औ चारों धाम लिख दूंगा। तुम्हीं रस्ता, तुम्हीं मंजिल, तुम्हें पैगाम लिख दूंगा। तुम्हीं आगाज, तुमको ही मेरा अंजाम लिख दूंगा। तेरे दिल के कहीं भीतर मेरा एक और भी घर है। जहाँ यादों का पहरा है औ यादों का ही मंजर है। मेरी दुनिया यकीं कर लो तुम्हारे दिल के अंदर है। मैं बहती नाव के जैसा तुम्हारा दिल समन्दर है। तुम्हारे सुर्ख होठों को छलकते जाम लिख दूंगा। तुम्हारे संग मिलता है मुझे आराम लिख दूंगा। मैं तुमको राधिका खुद को सलोना श्याम लिख दूंगा। ओ मेरी "अर्चना" खुद को तुम्हारा "राम" लिख दूंगा। मैं हर एक रात जगता हूँ, कभी खुद जगाओ तुम। मेरी गजलों को मेरे संग आकर गुनगुनाओ तुम। तुम्हे ज़िद आजमाने की तो बेशक आजमाओ तुम। तुम्हारा नाम इस दिल पर, है हिम्मत तो मिटाओ तुम। तुम्हीं दिन रात, तुमको ही मैं सुबह शाम लिख दूंगा। मेरा जो ...

एक प्याली चाय

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 एक प्याली चाय… (विश्व चाय दिवस पर) जिंदगी से बड़ा करीबी नाता है, मुझे बचपन से भाता है, ये एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो मजा आ जाय। सरहदों पे जवान तैनात। जाड़े की रात हो,और जागने की बात हो, एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो बात बन जाय। रेलगाड़ी का सफर, बहुत दूर है डगर,कैसे कटे ये सफर, एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो बात बन जाय। सर पे एग्जाम है। बस पढ़ना पढ़ना ही काम है, थोड़ा तो मन बहल जाय, एक प्याली चाय … मिल जाय, तो चैन मिल जाय। बहुत सारे मेहमान है, सब भूख से परेशान हैं, खाने में अभी देर है क्या? एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो बात बन जाय। सुबह जल्दी जाना है, कोई नींद से जगाय, कहीं गाड़ी ना छूट जाए,सुबह सुबह, एक प्याली चाय…. मिल जाय, तो बात बन जाय। काम का बोझ बहुत है, खतम होने का नाम ही नही लेता, मन ऊब सा रहा है मैडम, एक प्याली चाय… मिल जाय, तो बात बन जाय। ✍️ विरेन्द्र शर्मा

मैं अगर खुश हूं

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  **मैं अगर खुश हूं** मैं   अगर   खुश   हूं,  तो    खुश   हूं, ये बताने की  ………………..जरूरत क्या हैं। मेरी  खुशी  सबको पचती नहीं शायद, बेवजह उनको जलाने की ………..…. ….जरूरत  क्या  है। उनकी  वजह   से   मिली   हो  खुशी, तो     ये    अलग    बात     है  वरना,  खामखां ढोल बजाने की, ……..………..जरूरत  क्या है। खुश  होना न  होना मेरे  बस  में  कहां, खा रहा गोता भंवर में ये अलग बात है, अपनी तरह औरों को डुबाने की, ………………..जरूरत   क्या   है। कोई रूठे  तो   बेशक मना  लें  उनको, फिक्र करते हैं उनकी,ये जता दें उनको।  बे वजह रूठने  की हो आदत जिनकी, ऐसे रूठों को मनाने की… ……………………जरूरत क्या है। ✍️ विरेन्द्र शर्मा